How To Get Rid Of Citizenship Confusion


नागरिकता के भ्रमजाल से कैसे निकलें देष के नागरिक



 संषोधन कानून सीएए और एनआरसी के नाम पर पूरे देष में एक भ्रम का माहौल बना हुआ है। सत्तापक्ष यह बताने की कोषिष कर रहा है कि सीएए कानून किसी को नागरिकता देने का हैं, वहीं विपक्षी दलों के द्वारा लगातार यह प्रयास किया गया कि इस कानून के पीछे सत्ता पक्ष की अपना छुपा हुआ हथकंडा है। जिसके कारण विषेष रूप अल्पसंख्यक मुसलमानों के मन में यह बात बैठ गयी। इसके फलस्वरूप पूरे देष में हिंसा और आगजनी का एक तांडव चला, लेकिन सरकार की सख्ती के कारण बहुत जल्दी ही इस पर लगाम लग गयी। ऐसे में यह सवाल उठता है कि आखिर सीएए कानून में ऐसा क्या है जिसके कारण पूरे देष में बवाल मचा हुआ है। आम जानकारी के अनुसार अखंड भारत के विभाजन के पूर्व हिस्से जो अब स्वतंत्र रूप से अफगानिस्तान, पाकिस्तान, और बंगालादेष के रूप मे स्वतंत्र देष है। सन् 1947 से पहले विभाजन के पहले पूरा भारत एक था। लेकिन विभाजन के कारण पाकिस्तान और हिन्दुस्तान के दो टुकडे हो गये और 1971 मे तत्कालीन प्रधानमंत्री के अभुतपूर्व साहस दूरदर्षिता ने बांग्लादेष के रूप में पाकिस्तान के टूकडे कर एक अलग देष बना दिया । विभाजन के समय तत्कालीन दोनों सरकारों के द्वारा  नेहरू लियाकत समझौता अक्टूबर 1950 में किया गया था जिससे कि अपने -अपने देष में अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा की जाएगी। और यदि किसी भी समय उस देष के अल्पसंख्यकों को यह लगेगा कि उनके देष में उनकी स्थिति उस देष में रहने के लायक नहीं है, तो वह वहां से पलायन करके अपने देष में जा सकेगा।भारत ने तो इस समझौते की मर्यादा रखी लेकिन पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों के साथ अन्याय होता रहा जिसका परिणाम था कि विभाजन के समय जो अल्पसंख्यक पाकिस्तान में 37 प्रतिषत थे वे अब दो प्रतिषत से भी कम है जोगेन्द्रनाथ मण्डल जो कि दलित नेता थे ,विभाजन के समय पाकिस्तान में कानून व श्रममंत्री बने थे ,उनके साथ भी दोयम दर्जे का व्यवहार होता था और उन्होने वहां से त्यागपत्र देकर वापिस अपने वतन हिन्दुस्तान आ गये। स्वंय राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने पाकिस्तान में रहने वाले अल्पसंख्यकों को भारत में लाने की वकालत की थी। इसी को ध्यान में रखकर एनडीए सरकार के द्वारा नागरिकता संषोधन कानून यानि सीएए कानून संसद के द्वारा पारित करवाया। अब इसी कानून का विरोध कांग्रेस और वामपंथियों के द्वारा किया जा रहा है। उनके अनुसार यह कानून संविधान की मूल भावना के विपरीत है। क्योंकि इस कानून में धर्म के आधार पर विभाजन किया गया है, जो संविधान की मूल भावना धर्म निरपेक्षता के विपरीत है। वहीं सत्ता पक्ष का मानना है कि इस्लामिक देषों के अल्पसंख्यकों को ही नागरिकता संषोधन कानून के तहत ही विषेष अधिकार दिये जा रहे हैं, इसमें कोई गलत बात नहीं है। इसलिए यह कानून को सरकार को वापस लेना चाहिये। वहीं एनडीए विषेष रूप भाजपा मानवीय संवेदनाओं और अल्पसंख्यकों को विषेष हक दिलाने के नाम पर इसे वापिस लेने से  मना कर रही है। केरल के राज्यपाल मोहम्मद आरिफ खान का यह कहना कि ऐसी परिस्थिति में जब दोनों पक्ष का यह मानना है कि उनका ही पक्ष सही है, तो एकमात्र विकल्प यही बचता है कि आपस में बैठकर दोनों पक्ष अपने मसलों को सुलझाऐं। बस यही एक ऐसी बात है जिसे कोई भी पक्ष मानने को तैयार नहीं हो रहा है।विपक्ष का कहना है कि मुस्लिमों को भी इसमें ष्षामिल किया जाये जबकि सरकार का कहना है कि पाकिस्तान,बांग्लादेष अफगानिस्तान में मुस्लिम प्रताडित नहीं है फिर भी पिछले पांच सालों में 599 मुस्लिम ष्षरणार्थियों को भारत की नागरिकता दी गयी हे जिसमें प्रसिद्व गायक अदनान सामी का भी नाम है और भविष्य में भी वैधानिक प्रक्रिया के तहत वास्तविक मुस्लिम ष्षरणार्थी को नागरिकता दी जा सकती है इसलिये इस एक्ट पर बवाल मचाने का कोई सवाल ही नहीं उठता है जिसे बेमतलब विपक्ष के द्वारा  पूरे देष में एक अनावष्यक भय का वातावरण तैयार हो रहा है।जबकि सराकर विभीन्न विज्ञापनों के माध्यम से सीएए व एनआरसी के भ्रमजाल को तोड़ने की कोषिस कर रही है लेकिन इसके बावजूद भी देष में अराजकता का माहौल पैदा किया जा रहा है सीएए या एनआरसी से किसी भी धर्म के भारतीय की नागरिकता नहींे छिनी जायेगी लेकिन धुसपैठियों के खिलाफ कार्यवाही होगी ऐसा सरकार का मत है, इस पूरे उहापोह में देष की आम जनता ही पीस रही है। इस पूरे मसले का हल भी आपसी भाई चारे और प्रेम से ही निकलेगा। 
विजय आनन्द जोषी 



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