Malnutrition Children Did Not Reach In NRC
उमरिया में कुपोषित बच्चों संख्या 2300 पार
UMARIA:- जिले में कुपोषण को लेकर जिम्मेदार विभाग अपनी जिम्मेदारियों से दूर भागता हुआ दिखाई दे रहा है। महिला बाल विकास विभाग से प्राप्त आंकडों के अनुसार जनवरी 2018 में 2300 कुपोषित बच्चों की संख्या थी। जिसमें अति कुपोषित बच्चों की संख्या 205 थी। जनवरी से लेकर मई प्रथम पाक्षिक तक मात्र 163 बच्चों को ही एनआरसी में भर्ती कराया जा सका। हाल ही में जनसुनवायी में जिला कलेक्टर मालसिंह ने कई बच्चों को एनआरसी में भर्ती करवाया, नही तो हालात और भी बुरे हो सकते थे। इससे स्पष्ट साबित होता है, कि विभाग के जिम्मेदार अधिकारी अपने अधीनस्थ आंगनबाडी कार्यकर्ताओं से उस रूप से कार्य नहीं करवा पा रहे हैं, जिसकी जिम्मेदारी विभाग को सौंपी गयी है। एनआरसी केन्द्रों में अतिकुपोषित बच्चों को नहीं भर्ती कराने से कुपोषण का कलंक जिले के माथे से नहीं हट रहा है। विभागीय अधिकारियांे का रटा रटाया जबाब रहता है कि कुपोषित बच्चों के माता-पिता स्वयं अपने निजी कारणों से उन्हें भर्ती कराने से बचते हैं। गौरतलब है कि महिला बाल विकास विभाग अपनेेेेेेेेे कुपोषण के आकंडों को छुपाने का प्रयास करता है। कभी ये कुपेाषित बच्चों की संख्या 2600 बताइ्र्र जाती है कभी 2300 से अधिक। कुपोषण और एनआरसी में भर्ती कराये गये बच्चों की संख्या को आॅनलाइन माहवार दर्ज नही किया जाता है।
स्नीप परियोजना का नहीं मिला लाभ:- पिछले कुछ सालों से प्रदेष में कुपोषण के मामले में अव्वल रहने के कारण इसे स्नीप परियोजना से जोडा गया था। प्रदेष के मात्र 15 जिलों को स्नीप परियोजना से जोडा गया था, जिसका मूल उद्देष्य ही कुपोषण सही तरीके से दूर करना था। स्नीप परियोजना के प्रषिक्षण के प्रारम्भ से लेकर अंत तक इस में इसमें भारी भ्रष्टाचार किया गया जिसके चलते आंगनबाडी कार्यकर्ता को इसकी जानकारी और टेªनिंग नहीं मिल सकी। नोडल अधिकारी रीतेष दुबे के मार्गदर्षन में ही इस परियोजना को संचालित किया गया था। फर्जी बिल बाउचरों के माध्यम से इस प्रषिक्षण की तमाम प्रक्रियाओं को करने से आंगनबाडी कार्यकर्ताओं को सही ट्रेनिंग नहीं मिली थी, इसकी षिकायत सीएम हैल्प लाईन में की गयी थी। इसके कारण दुबारा से शुरू हुए प्रषिक्षण में कुल 637 आंगनबाडी कार्यकर्ताओं को 6 दिन में प्रषिक्षण दिया गया था। इस प्रषिक्षण के दौरान 2 लाख 31 हजार 499 रूपयों का टैªनिंग का खर्च दिखाया गया है। प्रषिक्षण में फिर वही कहानी दोहरायी गयी। जिसके कारण इस प्रषिक्षण का लाभ आंगनबाडी कार्यकर्ताओं को नहीं मिल पाया। प्रषिक्षण नहीं मिलने के कारण आंगनबाडी कार्यकर्ता तकनीकि माध्यमों के स्थान पर अभी वे पुराने ढर्रे पर ही चलते हुए अपने कार्य कर रहे हैं। इसी का परिणाम है कि आंगनबाडी कार्यकर्ता अतिकुपोषित बच्चों को भी एनआरसी केन्द्रों तक नहीं ला पा रही है। आंगनबाडी कार्यकर्ताओं पर की जा रही मानिटरिेंग पर सीधे ही सवाल खडे होते है।
भोपाल एम्स में चल रहा इलाज:- अति कुपोषित बच्चों को खोज कर उनका ईलाज नहीं करवा पाने के कारण कई बार स्थिति बहुत ही गंभीर हो जाती है। ऐसे ही एक उदाहरण महिला सषक्तिकरण अधिकारी ने पाली में अति कुपेाषित बच्चे की जानकारी मिलने पर उसे ईलाज के लिए भोपाल एम्स में भेजा। जहां उसका ईलाज चल रहा है। कलेक्टर के द्वारा व अन्य अधिकारियों के द्वारा जब इस प्रकार की सक्रियता दिखायी जा रही है, तो महिला विभाग विकास के अधिकारी व कर्मचारी क्या कर रहे हैं। आष्चर्यजनक रूप से जिला मुख्यालय के आसपास और जिले के दूरस्थ अंचल कुपोषण की एक जैसी स्थिति है।
इनका कहना है:- विभाग के अधिकारियों के द्वारा लगातार मानिटरिंग की जा रही है। त्यौंहारों के मौसम में कुपोषित बच्चों के परिजन बच्चों को अस्पताल में ईलाज करवाने के स्थान पर घर में रखना ही श्रेष्ठ समझते हैं। इस कारण से एनआरसी में बच्चों की संख्या कम दिखाई देती है।
शान्ति बैले, डीपीओ महिला बाल विकास विभाग उमरिया
सदानन्द जोषी
बच्चों के प्रति तो सजग रहना चाहिए प्रशासन को ...भविष्य है देश का वो
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