Kabaddi Does Not Get Gold In Asian Games


रजत और कांसे से करना पडा संतोष 

उमरिया:-  28 साल बाद एषियन गेम्स में कबड्डी में भारत को कोई स्वर्णिम उपलब्धि हासिल नहीं हो सकी। जब भारत लगातार विगत 24 सालों से गोल्ड मेडल में एषियाड में ला रहा था, तब तक किसी को भी इसकी अहमियत का पता नहीं चल रहा था। उस समय तो ऐसा लगता था कि कबड्डी में जीते तो क्या जीते। कबड्डी में तो हमें कोई हरा ही नहीं सकता, यह मुगालता इंडोनेषिया में हो रहे एषियन गेम्स में काफूर हो गया। यहां पुरूष वर्ग में भारत को केवल कांस्य पदक से ही संतोष करना पडा। वहीं महिला वर्ग की टीम फायनल में हारकर रजत पदक ही हासिल कर सकी। खेलों से जुडे हुए पदाधिकारियों को अब यह समझने की कोषिष कर रहे होंगे कि उनसे कहां चूक हो गयी। जबकि हकीकत यह थी अन्य देष धीरे-धीरे ही सही लगातार यह प्रयास कर रहे थे, कैसे कबड्डी के गोल्ड मेडल को हासिल किया जाये। उसके लिए वे सतत प्रयत्न करने के लिए भारत से ही कोच को चुना था। अपनी टीम के लिए भारतीय कोच  उपलब्ध कराये। एषियाड 2018 में  ईरान की पुरूष और महिला टीम ने कबड्डी में गोल्ड मेडल जीता है। ईरान के कबड्डी कोच भारतीय एसी जैन ही है। उनका कहना है कि मैं साबित करना चाहता था, कि मैं सर्वश्रेष्ठ हूं। इस समय तो उन्होंने यह साबित करके दिखा ही दिया। इसका सीधा मतलब है कि भारत में उनकी योग्यता को नकारा गया था, जिसके कारण उन्हें यहां से पलायन करना पडा। यह पहली बार तो हुआ नहीं ऐसा कई बार और कई अन्य क्षेत्रांे में हो चुका जब किसी भारतीय विभूति को अपनी योग्यता दिखाने के लिए विदेषी भूमि की शरण लेनी पडती है। एषियाड कबड्डी की शुरूआत भारत द्वारा करने के बाद लगातार 6 बार तक भारत को ही गोल्ड मेडल मिला था। इसीसे कबड्डी को महत्व ही नहीं दिया जा रहा था। जबकि हम यह भूल रहे हैं कि क्रिकेट का जनक इंग्लैंड है, लेकिन उसे आज तक भी क्रिकेट के किसी भी प्रारूप में कोई विष्वकप नहीं मिला है। ऐसे में हमे कबड्डी के खिलाडियों की महत्वता को समझना चाहिये थे, और उनका यथोचित सम्मान करना चाहिये था। सन् 1990 में पहली बार भारत ने एषियाड जीता था, उसके बाद सन् 2014 तक लगातार 6 बार स्वर्ण पदक जीता है। लेकिन देष के कितने लेागों के इन टीमों के कप्तान के नाम भी याद होगें। खेलों में उल्लेखनीय उपलब्धि के लिए सन् 1961 से अर्जुन अवार्ड की शुरूआत की गयी थी। कबड्डी में भारत का पहला अर्जुन अवार्ड अषन कुमार और विष्वजीत पालिन को सन् 1998 में ही मिला। सन् 2012 तक मात्र 15 अन्य खिलाडियों को अर्जुन अवार्ड मिला। सन् 2011 में पहली बार किसी महिला खिलाडी अर्जुन पुरूस्कार के लिए चुना गया , वो थी तेजस्वनी बाई। दे्राणाचार्य पुरूस्कार के लिए सन् 2002
,2005, 2012, 2017 में कबड्डी के कोच को चुना गया।  ऐसे में जब पूरे भारतीय समाज का ही ध्यान के मानसिक गुलामी वाले खेल क्रिकेट में लगा रहेगा तो कैसे अन्य खेलों को वो सुविधा मिल सकेगी जो उन्हें मिलनी चाहिये। क्रिकेट के खेल के कारण सभी खेलों में असधारण उपलब्धि हासिल करने के बाद भी खिलाडियों की ओर ध्यान नहीं दिया जाता है। हरियाणा जैसे स्टेट की अलग बात है, वहां खेलों के लिए अलग से व्यवस्था और खिलाडियों को उचित सम्मान और पुरूस्कार दिया जा रहा है। नतीजा भी साफ है 7 गोल्ड मेडल में से 2 तो हरियाणा के खिलाडियों को ही मिले हैं। जिस प्रकार हरियाणा प्रदेष अपने खिलाडियों का उत्साह वर्धन करते हुए पहले से ही योजना बना कर कार्य कर रहा है, ठीक उसी तर्ज पर पूरे देष में होना चाहिये।  फिर अन्य खेलों से हम यह आषा भी करें कि वे हमारे लिए वे कुछ अविस्मरणीय उपलब्धि दिला ही देंगे। हालाकि यह भी सच है कि गुदडी के लाल लगातार अपनी स्पष्ट छाप छोडते हुए इस एषिया डमें भी वुषू, शूटिंग, नोेकायान,गोलाफेंक जैसे गुमनाम खेलों में अपने देष का नाम रोषन कर रहे हैं।

Comments

  1. desh ab hocky me 1990 ke bad se olympic me padak ke liye taras raha hai. ek samay tha jab bharat olympic me lagatar 7 gold medal lekar aa chuka tha. us samay desh ne hocky par dhayan dena band kar diya tha .

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