Due To The Death of Malnourished Child, The Question of The Functioning of The Department
कुपोषित बच्चे की मौत से विभाग की कार्यषैली पर उठे सवाल
चार साल पहले कुपोषितों बच्चों की संख्या का आंकडा 1729
, जिले में कुपोषित बच्चों की संख्या 2600 पार
फोटो:- फाइल फोटो कुपोषित बच्चा
उमरिया:- हाल ही में जिला मुख्यालय के पास कुपोषित बच्चे की मौत से महिला बाल विकास में हडकम्प मच गया। हांलाकि कुछ ही समय बाद यह स्थिति फिर बदल जायेगी, फिर वैसे ही विभाग के कर्मचारियों के द्वारा लापरवाहियो शुरू हो जायेगीं। विभाग अपनी कमियों को ढाकने और छुपाने के लिए नित नयी खोज करता रहता है। कुपोषण को दूर करने के हरसंभव प्रयास किये जा रहा है। लेकिन कुपोषण बीते वर्षों की तुलना में घटने के स्थान पर बढता ही जा रहा है। महिला बाल विकास विभाग इसके लिए अजीबो-गरीब तर्क दे रहा है। कुपोषण बढने का प्रमुख कारण प्रदेष के चुनिंदा जिलों मंे शुरू हुई स्नीप परियोजना है। इस के चलते अब तक जिन कुपोषित बच्चों को खोजा नहीं गया था, उन्हें खोजा गया। विभाग के द्वारा अब ढूंढ-ढंूढ कर कुपोषित बच्चों को चिन्हित किया गया है। इसके कारण पहले से कुपोषित बच्चों की संख्या में वृद्धि दिखाई दे रही है। सन् 2014 में विभाग द्वारा कुपोषित बच्चों की संख्या जिले में 1729 थी । वर्तमान समय में जिले मंें 2613 के लगभग बतालाई जा रही है। जिले में कुपोषण ना घटने का प्रमुख कारण अधिकारियों की लापरवाही के साथ , खाद्यान्न उठाव की स्थिति को बिगाडना और इसमें भ्रष्टाचार करना, स्नीप परियोजना को सही तरीके से लागू नहीं कर पाना शामिल है। अधिकांष सालों से जमे परियोजना अधिकारी अपने कार्यालयों से ही सभी आंगनबाडी केन्द्रों में निगाह रखने की कोषिष करते हैं। जिसके कारण माह के कई दिनों में जिले के चारों पोषण पुर्नवास केन्द्रों में किसी ना किसी समय कुपोषित बच्चों की संख्या शून्य तक जा पहुंचती है।
खाद्यान्न उठाव और केन्द्रों में पहुंचने की समस्या:- जिले में कुल मिनी और आंगनबाडी केन्द्रो की संख्या 637 है। इन सभी केन्द्रों में पोषण आहार को सही तरीके से पहुचाने की जिम्मेदारी विभाग की रहती है। इसके लिए और खाद्यान्न उठाव के लिए जो बजट शासन के द्वारा उपलब्ध कराया जाता है, उसकी बंदरबांट विभाग के अधिकारियों के द्वारा की जाती है। इसकी लिखित षिकायत भी मुख्यमंत्री हैल्पलाईन में की गयी है। पोषण आहार को केन्द्रों तक पहुंचाने में धांधली होने की खबर हर समय होती रहती है। जानकारी के अनुसार मंहगाई के दौर में भी पोषण आहार केन्द्रों तक पहंुचाने वाले सन् 2007 की रेट में पोषण आहार को केन्द्रों में पहंुचा रहे है। वे लोग इसे किस लालच में कर रहे हैं, यह जांच के बाद ही पता चल सकता है।
स्नीप परियोजना हुई फेल:- विष्व बैंक की कुपोषण दूर करने वाली योजना - स्नीप परियोजना है। प्रदेष के 15 जिलों में से एक उमरिया है जिसे स्नीप परियोजना का लाभ मिला है। इसे लागू और क्रियान्वयन करने वाले अधिकारियों के रवैये के कारण यहां फेल हो गयी। फर्जी बिल बाउचरों के माध्यम से आनन-फानन में स्नीप परियोजना के प्रषिक्षण को साकार किया गया। जिसके कारण अधिकांष आगनबाडी कार्यकर्ताओं को इस योजना का एबीसी भी नहीं पता है। वे सभी अपने पुराने और रटे-रटाये ढर्रै पर ही कार्य कर रहे हैं। नोडल अधिकारी के द्वारा किस प्रकार से फर्जी प्रषिक्षण करवाया गया है , जिसके कारण आंगनबाडी कार्यकर्ताओं को कुछ समझ में नहीं आया है। इसकी षिकायत विष्व बैंक तक की गयी है, लेकिन इनमें भी कोई जांच नहीं की गयी।
सालों से जमे परियोजना अधिकारी:- जिले के तीनों ब्लाॅक के परियोजना अधिकारियों को जमे हुए पांच साल से अधिक हो चुके है। अब एक परियोजना अधिकारी का स्थानान्तरण हो चुका है। सुनेन्द्र सदाफल जैसे परियोजना अधिकारी को निलम्बन तक हुआ था। ऐसे में आंगनबाडी कार्यकर्ताओं के द्वारा सही तरीके से कार्य ना किया कोई बडी बात नहीं हैं। इन्हीं अधिकारियों की लापरवाही के चलते कुपोषण की संख्या में वृद्धि हो रही है। स्नेह सरोकार योजना के तहत परियोजना अधिकारी द्वारा लिये कुपोषित बच्चे तक कुपोषण के दंष को झेल रहे हैं। लाडली लक्ष्मी योजना को सही तरीके से लागू नही कर पाना और सैनटरी नेपकिन योजना के शुरू होने के साथ ही बंद होने में भी परियोजना अधिकारियों की भूमिका संदिग्ध थी, जिसे विभागीय जांच के बाद क्लीन चिट दे दिया गया था। नये डीपीओ शांति बेले के आने के बाद उपरोक्त सभी स्थितियों में धीरे-धीरे सुधार होता हुआ दिखाई दे रहा था, वो भी अब नहीं हो रहा है। जब जिला मुख्यालय के समीप ही कुपोषित बच्चे की मौत हो गयी तो इसका पूरा जिम्मेदारी स्वास्थ्य विभाग पर सौंप कर अपनी जिम्मेदारी से मुंह मोड लिया गया।
इनका कहना: -
कुपोषित बच्चे को दो बार ईलाज के लिए जिला अस्पताल में भर्ती करवाया गया था। जिला अस्पताल के चिकत्सकों के अनुसार इलाज के बाद घर पहंुचने पर अचानक इंफेक्षन फैलने के कारण बच्चे का साथ यह हादसा हो गया। खाद्यान्न उठाव की स्थिति में लगातार सुधार किया जा रहा है। सभी परियोजना अधिकारियों को समय-समय पर निर्देष दिये जा रहे हैं, जिसके पोषण पुर्नवास केन्द्रों में कुपोषित बच्चेां की संख्या में वृद्धि दिखाई दे रही है। हालात केा सुधारने में कुछ समय लगेगा।
महिला बाल विकास अधिकारी डीपीओ: - शान्ति बैेले
चार साल पहले कुपोषितों बच्चों की संख्या का आंकडा 1729
, जिले में कुपोषित बच्चों की संख्या 2600 पार
फोटो:- फाइल फोटो कुपोषित बच्चा
उमरिया:- हाल ही में जिला मुख्यालय के पास कुपोषित बच्चे की मौत से महिला बाल विकास में हडकम्प मच गया। हांलाकि कुछ ही समय बाद यह स्थिति फिर बदल जायेगी, फिर वैसे ही विभाग के कर्मचारियों के द्वारा लापरवाहियो शुरू हो जायेगीं। विभाग अपनी कमियों को ढाकने और छुपाने के लिए नित नयी खोज करता रहता है। कुपोषण को दूर करने के हरसंभव प्रयास किये जा रहा है। लेकिन कुपोषण बीते वर्षों की तुलना में घटने के स्थान पर बढता ही जा रहा है। महिला बाल विकास विभाग इसके लिए अजीबो-गरीब तर्क दे रहा है। कुपोषण बढने का प्रमुख कारण प्रदेष के चुनिंदा जिलों मंे शुरू हुई स्नीप परियोजना है। इस के चलते अब तक जिन कुपोषित बच्चों को खोजा नहीं गया था, उन्हें खोजा गया। विभाग के द्वारा अब ढूंढ-ढंूढ कर कुपोषित बच्चों को चिन्हित किया गया है। इसके कारण पहले से कुपोषित बच्चों की संख्या में वृद्धि दिखाई दे रही है। सन् 2014 में विभाग द्वारा कुपोषित बच्चों की संख्या जिले में 1729 थी । वर्तमान समय में जिले मंें 2613 के लगभग बतालाई जा रही है। जिले में कुपोषण ना घटने का प्रमुख कारण अधिकारियों की लापरवाही के साथ , खाद्यान्न उठाव की स्थिति को बिगाडना और इसमें भ्रष्टाचार करना, स्नीप परियोजना को सही तरीके से लागू नहीं कर पाना शामिल है। अधिकांष सालों से जमे परियोजना अधिकारी अपने कार्यालयों से ही सभी आंगनबाडी केन्द्रों में निगाह रखने की कोषिष करते हैं। जिसके कारण माह के कई दिनों में जिले के चारों पोषण पुर्नवास केन्द्रों में किसी ना किसी समय कुपोषित बच्चों की संख्या शून्य तक जा पहुंचती है।
खाद्यान्न उठाव और केन्द्रों में पहुंचने की समस्या:- जिले में कुल मिनी और आंगनबाडी केन्द्रो की संख्या 637 है। इन सभी केन्द्रों में पोषण आहार को सही तरीके से पहुचाने की जिम्मेदारी विभाग की रहती है। इसके लिए और खाद्यान्न उठाव के लिए जो बजट शासन के द्वारा उपलब्ध कराया जाता है, उसकी बंदरबांट विभाग के अधिकारियों के द्वारा की जाती है। इसकी लिखित षिकायत भी मुख्यमंत्री हैल्पलाईन में की गयी है। पोषण आहार को केन्द्रों तक पहुंचाने में धांधली होने की खबर हर समय होती रहती है। जानकारी के अनुसार मंहगाई के दौर में भी पोषण आहार केन्द्रों तक पहंुचाने वाले सन् 2007 की रेट में पोषण आहार को केन्द्रों में पहंुचा रहे है। वे लोग इसे किस लालच में कर रहे हैं, यह जांच के बाद ही पता चल सकता है।
स्नीप परियोजना हुई फेल:- विष्व बैंक की कुपोषण दूर करने वाली योजना - स्नीप परियोजना है। प्रदेष के 15 जिलों में से एक उमरिया है जिसे स्नीप परियोजना का लाभ मिला है। इसे लागू और क्रियान्वयन करने वाले अधिकारियों के रवैये के कारण यहां फेल हो गयी। फर्जी बिल बाउचरों के माध्यम से आनन-फानन में स्नीप परियोजना के प्रषिक्षण को साकार किया गया। जिसके कारण अधिकांष आगनबाडी कार्यकर्ताओं को इस योजना का एबीसी भी नहीं पता है। वे सभी अपने पुराने और रटे-रटाये ढर्रै पर ही कार्य कर रहे हैं। नोडल अधिकारी के द्वारा किस प्रकार से फर्जी प्रषिक्षण करवाया गया है , जिसके कारण आंगनबाडी कार्यकर्ताओं को कुछ समझ में नहीं आया है। इसकी षिकायत विष्व बैंक तक की गयी है, लेकिन इनमें भी कोई जांच नहीं की गयी।
सालों से जमे परियोजना अधिकारी:- जिले के तीनों ब्लाॅक के परियोजना अधिकारियों को जमे हुए पांच साल से अधिक हो चुके है। अब एक परियोजना अधिकारी का स्थानान्तरण हो चुका है। सुनेन्द्र सदाफल जैसे परियोजना अधिकारी को निलम्बन तक हुआ था। ऐसे में आंगनबाडी कार्यकर्ताओं के द्वारा सही तरीके से कार्य ना किया कोई बडी बात नहीं हैं। इन्हीं अधिकारियों की लापरवाही के चलते कुपोषण की संख्या में वृद्धि हो रही है। स्नेह सरोकार योजना के तहत परियोजना अधिकारी द्वारा लिये कुपोषित बच्चे तक कुपोषण के दंष को झेल रहे हैं। लाडली लक्ष्मी योजना को सही तरीके से लागू नही कर पाना और सैनटरी नेपकिन योजना के शुरू होने के साथ ही बंद होने में भी परियोजना अधिकारियों की भूमिका संदिग्ध थी, जिसे विभागीय जांच के बाद क्लीन चिट दे दिया गया था। नये डीपीओ शांति बेले के आने के बाद उपरोक्त सभी स्थितियों में धीरे-धीरे सुधार होता हुआ दिखाई दे रहा था, वो भी अब नहीं हो रहा है। जब जिला मुख्यालय के समीप ही कुपोषित बच्चे की मौत हो गयी तो इसका पूरा जिम्मेदारी स्वास्थ्य विभाग पर सौंप कर अपनी जिम्मेदारी से मुंह मोड लिया गया।
इनका कहना: -
कुपोषित बच्चे को दो बार ईलाज के लिए जिला अस्पताल में भर्ती करवाया गया था। जिला अस्पताल के चिकत्सकों के अनुसार इलाज के बाद घर पहंुचने पर अचानक इंफेक्षन फैलने के कारण बच्चे का साथ यह हादसा हो गया। खाद्यान्न उठाव की स्थिति में लगातार सुधार किया जा रहा है। सभी परियोजना अधिकारियों को समय-समय पर निर्देष दिये जा रहे हैं, जिसके पोषण पुर्नवास केन्द्रों में कुपोषित बच्चेां की संख्या में वृद्धि दिखाई दे रही है। हालात केा सुधारने में कुछ समय लगेगा।
महिला बाल विकास अधिकारी डीपीओ: - शान्ति बैेले
very nice coverage ....we need to do at ur own level then something will chng
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