असर दिखेगा एंटी इनकंबेसी का या पुराने चावलों की होगी जीत
मानपुर में सीधी टक्कर तो बांधवगढ में चतुष्कोणीय संघर्ष
असर दिखेगा एंटी इनकंबेसी का या पुराने चावलों की होगी जीत
अब भीतरघाती ही दिलायेगें जीत
उमरिया:- चुनाव प्रचार की शुरूआत में जब भाजपा ने अपने प्रत्याषियों का चयन सबसे पहले किया था, तब लग रहा था एक और आसान विजय। बीजेपी विगत तीन विधानसभा चुनाव की तरह ही इस बार के विधानसभा के चुनाव को भी जीत लेगी। लेकिन अच्छी शुरूआत करने के बाद जिस प्रकार से उमरिया की दोनों विधानसभाओं में वायरल होते वीडियो और बीजेपी के कार्यकर्ताओं के रूठने-मनाने का सिलसिला चल रहा है, उससे ऐसा प्रतीत हो रहा है कि वेलडेन ईज हाफ डन इस बार पूरा होता हुआ नहीं दिखाई देगा। कांग्रेस पार्टी के द्वारा प्रत्याषियों चयन में जिस प्रकार से कन्फयूजन दिखाई दे रहा था, लेकिन उसके बाद उन्होंने अपने बागी प्रत्याषियों को जल्दी से मिला कर अपनी बाजी को संभालने का पूरा प्रयास किया है। इससे चुनाव की रोचकता बरकरार है। इस चुनाव की सबसे बडी विषेषता बागी प्रत्याषी के साथ गोंडवाना गणतंत्र पार्टी और बसपा का सक्रिय भूमिका निभाना भी है। राजनीतिज्ञ पंडितों के अनुसार इससे दोनेां विधानसभाओं के चुनावों का परिणाम के जीत का अन्तर अधिकतम 20 हजार मतों से अधिक नहीं हो पायेगा। यह तय है कि एकतरफा जीत नहीं होने वाली। मानपुर विधानसभा मंे दोनों प्रमुख राजनैतिक दलों में सीधी टक्कर तो बांधवगढ विधानसभा में चतुष्कोणीय संघर्ष की स्थिति बनी हुई है।
जुमला बन रहा काली चाय:- बांधवगढ विधानसभा में एक छत्र चार दषकों से प्रतिनिधित्व करने वाले राजनीतिक दल के प्रमुख प्रत्याषी का पुराना दंाव इस बार चलता हुआ दिखाई नहीं दे रहा है। काली चाय पिलावा, बीडी पिलावा, तोर बिटिया जो भाजी बनाई वो खिलावा जैसे जुमले से अधिकांष समाज को उकता रहे हैं। वहीं समाज में पहुचने में अपने साथ हो रहे अत्याचारों की याद दिला रहे हैं, इसपर माफी भी मांगी जा रही है। ये समाज परम्परागतरूप से पार्टी के प्रति निष्ठा रखता है, वो कितना माफ करेगा, समय ही बताऐगा। वहीं अन्य पार्टियों से मतदाता ज्यादा खुष नहीं हैं। प्रमुख विपक्षी दल में अचानक बने प्रत्याषी के स्थान में चिरपरिचित चेहरा होता तो चुनाव में सीधी टक्कर हो सकती थी। इसी से बागी प्रत्याषी अपने समाज के लिए अस्मिता के प्रष्नचिन्ह को काफी सफलता मिलती दिख रही है। वहीं बसपा की हाथी चाल से सबक लेते हुए गोंगापा पार्टी भी बूथ को कवर करने का प्रयास कर रही है। इससे बांधवगढ विधानसभा में चुनाव के मतदाताओं के वोट बंट जायेगें। ऐसे में विधायक की झोली किसके खाते में जायेगी के सवाल पर पंडितों की बोलती बंद हो गयी है।
वायरल वीडियों बनेगा परेषानी:- मानपुर विधानसभा में वायरल होता वीडियो परेषानी का सबब बनता हुआ दिखाई दे रहा है। इससे पहले से ही कांटे की टक्कर होता हुआ चुनाव और दिलचस्प मोड पर पहुंच गया है। अभी तक दोनेां राजनैतिक दलों के स्टार प्रचारक पहुंच चुके है, अब बचे हुए सीमित समय में किसी बडे स्टार प्रचारक के पहुंचने की संभावना भी नहीं है। इन स्टार प्रचारकों के कारण जनता अपना वोट किसे देती है, ये देखना भी रोचक होगा। मानपुर विधानसभा में ब्राहम्ण मतदाता जिसका जिक्र बहुत समय से होता हुआ दिखाई दे रहा है, उसके वोट निर्णायक भूमिका निभायेगें। यदि प्रमुख राजनैतिक दल इनसे दूरी बनाये रखेगा, तो फिर बहुत देर होने की संभावना है। इन सबके साथ सबसे बडा दांव तो भीतरघातियों से बचने का ही है। हांलाकि अभी तक भीतरघातियों ने अपनी चाल शुरू नहीं की है। जैसे ही इनकी चाल शुरू होगी तो तभी पता चलेगा कि उंट किस करवट बैठ रहा है। कौन है ये भीतरघाती, इसे समझने में बडे से बडे राजनीतिज्ञ पंडित की समझ भी चकरघिन्नी बन जाती है।
वोटों का समीकरण:- विगत तीन विधानसभाओं के वोटों के प्रतिषत को देखने से स्पष्ट होता है कि दोनों प्रमुख राजनैतिक दलों के परम्परागत वोटों में बहुत ज्यादा अन्तर नहीं है। परम्परागत वोटों प्रत्याषी कोई भी हो उनका वोट केवल अपने राजनैतिक दल की ओर जाता है। सामान्य औसत के अनुसार सत्तारूढ दल के परम्परागत वोटों का प्रतिषत 38 से 40 प्रतिषत तक का है , वहीं प्रमुख विपक्षी राजनैतिक दल का 32 से 36 फीसदी तक का है। यह माना जाय कि दोनों के बीच में ही मतप्राप्त वोटों का प्रतिषत 55 से 60 प्रतिषत है। इस प्रकार से शेष बचे लगभग 40 प्रतिषत वोट ही विधायक पद को जीत दिलायेगंे। इस बार बैगा, साहू, रैदास, ब्राहम्ण समाज के मतों का विभाजन ही विधायक बनने की गारन्टी है। इस ओर दोनेंा राजनैतिक दल अपना पूरा ध्यान दे रहे हैं। प्रमुख विपक्षी दल के बीच पायी जाने वाली गुटबाजी से निजात पाना कोई आसान कार्य नहीं है। यह भी आखिरकार चुनाव परिणाम को बदल सकता है।
असर दिखेगा एंटी इनकंबेसी का या पुराने चावलों की होगी जीत
अब भीतरघाती ही दिलायेगें जीत
उमरिया:- चुनाव प्रचार की शुरूआत में जब भाजपा ने अपने प्रत्याषियों का चयन सबसे पहले किया था, तब लग रहा था एक और आसान विजय। बीजेपी विगत तीन विधानसभा चुनाव की तरह ही इस बार के विधानसभा के चुनाव को भी जीत लेगी। लेकिन अच्छी शुरूआत करने के बाद जिस प्रकार से उमरिया की दोनों विधानसभाओं में वायरल होते वीडियो और बीजेपी के कार्यकर्ताओं के रूठने-मनाने का सिलसिला चल रहा है, उससे ऐसा प्रतीत हो रहा है कि वेलडेन ईज हाफ डन इस बार पूरा होता हुआ नहीं दिखाई देगा। कांग्रेस पार्टी के द्वारा प्रत्याषियों चयन में जिस प्रकार से कन्फयूजन दिखाई दे रहा था, लेकिन उसके बाद उन्होंने अपने बागी प्रत्याषियों को जल्दी से मिला कर अपनी बाजी को संभालने का पूरा प्रयास किया है। इससे चुनाव की रोचकता बरकरार है। इस चुनाव की सबसे बडी विषेषता बागी प्रत्याषी के साथ गोंडवाना गणतंत्र पार्टी और बसपा का सक्रिय भूमिका निभाना भी है। राजनीतिज्ञ पंडितों के अनुसार इससे दोनेां विधानसभाओं के चुनावों का परिणाम के जीत का अन्तर अधिकतम 20 हजार मतों से अधिक नहीं हो पायेगा। यह तय है कि एकतरफा जीत नहीं होने वाली। मानपुर विधानसभा मंे दोनों प्रमुख राजनैतिक दलों में सीधी टक्कर तो बांधवगढ विधानसभा में चतुष्कोणीय संघर्ष की स्थिति बनी हुई है।
जुमला बन रहा काली चाय:- बांधवगढ विधानसभा में एक छत्र चार दषकों से प्रतिनिधित्व करने वाले राजनीतिक दल के प्रमुख प्रत्याषी का पुराना दंाव इस बार चलता हुआ दिखाई नहीं दे रहा है। काली चाय पिलावा, बीडी पिलावा, तोर बिटिया जो भाजी बनाई वो खिलावा जैसे जुमले से अधिकांष समाज को उकता रहे हैं। वहीं समाज में पहुचने में अपने साथ हो रहे अत्याचारों की याद दिला रहे हैं, इसपर माफी भी मांगी जा रही है। ये समाज परम्परागतरूप से पार्टी के प्रति निष्ठा रखता है, वो कितना माफ करेगा, समय ही बताऐगा। वहीं अन्य पार्टियों से मतदाता ज्यादा खुष नहीं हैं। प्रमुख विपक्षी दल में अचानक बने प्रत्याषी के स्थान में चिरपरिचित चेहरा होता तो चुनाव में सीधी टक्कर हो सकती थी। इसी से बागी प्रत्याषी अपने समाज के लिए अस्मिता के प्रष्नचिन्ह को काफी सफलता मिलती दिख रही है। वहीं बसपा की हाथी चाल से सबक लेते हुए गोंगापा पार्टी भी बूथ को कवर करने का प्रयास कर रही है। इससे बांधवगढ विधानसभा में चुनाव के मतदाताओं के वोट बंट जायेगें। ऐसे में विधायक की झोली किसके खाते में जायेगी के सवाल पर पंडितों की बोलती बंद हो गयी है।
वायरल वीडियों बनेगा परेषानी:- मानपुर विधानसभा में वायरल होता वीडियो परेषानी का सबब बनता हुआ दिखाई दे रहा है। इससे पहले से ही कांटे की टक्कर होता हुआ चुनाव और दिलचस्प मोड पर पहुंच गया है। अभी तक दोनेां राजनैतिक दलों के स्टार प्रचारक पहुंच चुके है, अब बचे हुए सीमित समय में किसी बडे स्टार प्रचारक के पहुंचने की संभावना भी नहीं है। इन स्टार प्रचारकों के कारण जनता अपना वोट किसे देती है, ये देखना भी रोचक होगा। मानपुर विधानसभा में ब्राहम्ण मतदाता जिसका जिक्र बहुत समय से होता हुआ दिखाई दे रहा है, उसके वोट निर्णायक भूमिका निभायेगें। यदि प्रमुख राजनैतिक दल इनसे दूरी बनाये रखेगा, तो फिर बहुत देर होने की संभावना है। इन सबके साथ सबसे बडा दांव तो भीतरघातियों से बचने का ही है। हांलाकि अभी तक भीतरघातियों ने अपनी चाल शुरू नहीं की है। जैसे ही इनकी चाल शुरू होगी तो तभी पता चलेगा कि उंट किस करवट बैठ रहा है। कौन है ये भीतरघाती, इसे समझने में बडे से बडे राजनीतिज्ञ पंडित की समझ भी चकरघिन्नी बन जाती है।
वोटों का समीकरण:- विगत तीन विधानसभाओं के वोटों के प्रतिषत को देखने से स्पष्ट होता है कि दोनों प्रमुख राजनैतिक दलों के परम्परागत वोटों में बहुत ज्यादा अन्तर नहीं है। परम्परागत वोटों प्रत्याषी कोई भी हो उनका वोट केवल अपने राजनैतिक दल की ओर जाता है। सामान्य औसत के अनुसार सत्तारूढ दल के परम्परागत वोटों का प्रतिषत 38 से 40 प्रतिषत तक का है , वहीं प्रमुख विपक्षी राजनैतिक दल का 32 से 36 फीसदी तक का है। यह माना जाय कि दोनों के बीच में ही मतप्राप्त वोटों का प्रतिषत 55 से 60 प्रतिषत है। इस प्रकार से शेष बचे लगभग 40 प्रतिषत वोट ही विधायक पद को जीत दिलायेगंे। इस बार बैगा, साहू, रैदास, ब्राहम्ण समाज के मतों का विभाजन ही विधायक बनने की गारन्टी है। इस ओर दोनेंा राजनैतिक दल अपना पूरा ध्यान दे रहे हैं। प्रमुख विपक्षी दल के बीच पायी जाने वाली गुटबाजी से निजात पाना कोई आसान कार्य नहीं है। यह भी आखिरकार चुनाव परिणाम को बदल सकता है।
Nice coverage
ReplyDeleteGood
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