Congress leaves away from factionalism....!!!!!!!!!!!
गुटबाजी से दूर कांग्रेस ने खेाले पत्ते
घोषित हुए दोनों विधानसभा उम्मीदवार
बांधवगढ से ध्यानसिंह परस्ते, तो मानपुर से तिलकराज सिंह
अब होगा रोमांचक चुनावी दंगल
फोटो:- बांधवगढ प्रत्याषी ध्यानसिंह , मानपुर प्रत्याषी तिलकराज सिंह
उमरिया:- दीपावली के दिन कांग्रेस ने डबल धमाका करते हुए अपने पत्ते खोल दिये। जिससे प्रमुख विपक्षी दलों के होष उड गये। कांग्रेस ने मानपुर क्षेत्र से पहला धमका तिलकराज सिंह को अपना उम्मीदवार घोषित करते हुए किया था। कांग्रेसी कार्यकर्ताओं बांधवगढ क्षेत्र में उम्मीदवार की घोषणा की देरी से परेषान हो रहे थे। कांग्रेस के द्वारा अपने उम्मीदवार की घोषणा नहीं करने से कार्यकर्ताओं की सांसे टूटती हुई दिखाई दे रही थी। लेकिन जब बांधवगढ क्षेत्र के लिए डा ध्यानसिंह परस्ते के नाम को घोषित किया , तो उनके जान में जान आ गयी। गौरतलब है कि पूरे प्रदेष में कांग्रेस जहां गुटबाजी में फंसी हुई दिखाई दे रही है। उनके अधिकांष घोषित प्रत्याषी किसी ना किसी गुट से जुडे हुए हैं। उम्मीदवार सिंधिया गुट, कमलनाथ गुट, दिग्विजय सिंह गुट, और अजय सिंह उर्फ राहुल गुट से जुडे हुए हैं। कर्मठ कार्यकर्ताओं के अनुसार उमरिया में कार्यकर्ताओं की मांग को ही सर्वोपरि मानते हुए दोनों ही प्रत्याषियों का चयन कार्यकर्ताओं की ईच्छा अनुसार किया गया है। ऐसे में उमरिया की दोनों विधानसभा चुनाव बहुत ही दिलचस्प मोड पर पहंुच गया है। सन् 2003 , 2008, 2013 के विधानसभा चुनावों में भाजपा के सामने कोई भी प्रत्याषी सीधी टक्कर देते हुए दिखाई नहीं दे रहे थे। पहले तो 15 साल की एंटी इनकंबिसी फैक्टर फिर कांग्रेस के द्वारा प्रत्याषियों का चयन कार्यकर्ताओं की मांग के आधार पर करने से यह चुनावी दंगल भारत -पाक के क्रिकेट के मैच जैसा रोमांचक बन गया है। अब दोनों ही प्रमुख राजनैतिक दलों में से किसी की भी जीत में कार्यकर्ता ही अपना प्रमुख रोल निभायेगें। जो भी राजनैतिक दल अपने कार्यकर्ताओं को साधेगा जीत उसकी होगी। गौरतलब है कि उमरिया के राजनैतिक पंडितों के अनुसार तो दोनों ही प्रमुख राजनीतिक दलों में सीधी टक्कर है। वहीं अन्य राजनैतिक दल के साथ निर्दलीय उम्मीदवार इनकी उम्मीदों की जीत को रन आउट करने में अपनी भूमिका किस प्रकार से निभायेगें, यह देखना होगा।
ध्यानसिंह के दोनों हाथों में लड्डू:- बांधवगढ सीट के लिए कांग्रेस ने अपना प्रत्याषी के चयन में काफी समय लिया। ध्यानसिंह के नाम का चयन करने में उन्हें काफी मषक्कत करनी पडी। इसका प्रमुख कारण उनकी सुपुत्री को शहडोल संभाग की जैतपुर विधानसभा से भाजपा का उम्मीदवार घोषित करना था। इस दुविधा को त्यागने में कांग्रेस आला कमान को काफी माथापच्ची करनी पडी। उमरिया के राजनैतिक पंडितों के अनुसार षिक्षाविद , मृदुभाषी, सरल और सहज रूप से आम जनता से मिलने वाले प्रत्याषी का चयन करते हुए कांगे्रस ने अपनी पहली बाजी अपने नाम कर ली है। ध्यानसिंह को कांग्रेस ने अपना उम्मीदवार बांधवगढ सीट से बनाया है। वहीं उनकी सुपुत्री मनीषा सिंह को जैतपुर विधानसभा सीट के लिए भाजपा ने अपना उम्मीदवार घोषित किया है। ऐसे में ध्यानसिंह को दोनेंा हाथों में लड्डू रखते हुए पिता-पुत्री दोनों की विजय कामना करनी पड रही है। जहां वे अपनी बेटी को भी विजयी होते हुए देखने चाहते हैं, वहीं अपनी विजय के लिए भी जनता और भगवान के दरवाजे में पहुंच रहे हैं। ऐसे में यह देखना बहुत ही दिलचस्प होगा कि भगवान उनकी झोली में कितनी खुषियां देता है।
मानपुर से तिलकराज सिंह कांग्रेस उम्मीदवार:- मानपुर क्षेत्र से कांग्रेस आलाकमान को ज्ञानवती सिंह, शकुन्तला प्रधान जैसे परिचित नामों के स्थान पर तिलकराज सिंह को अपना उम्मीदवार की घोषणा को दीवाली पूर्व धमाके के रूप में देखा जा रहा है। तिलकराज सिंह पहले भाजपा में शामिल थे। लेकिन जब उन्हें यह दिखाई दिया कि भाजपा की मीनासिंह जैसी कद्दावर नेता के सामने उनकी एक नहीं चलेगी। उन्होंने अपनी महत्वाकंाक्षाओं की उम्मीदों को पूरा करने के लिए कांग्रेस का दामन थाम लिया। कुछ ही सालों की मेहनत के बाद अब उन्हे यह मौका भी मिल गया। वोटों की गणित से देखा जाये तो मीनासिंह की जीत का अन्तर प्रत्येक विधानसभा चुनाव में बढता चला गया है। इसका सीधा मतलब है कि मीनासिंह के प्रति क्षेत्र की जनता का लगाव भी बढता ही जा रहा है। उनकी सर्वमान्यता को कोई सीधी टक्कर देता हुआ भी दिखाई नहीं दे रहा है। उमरिया के राजनीतिक पंडितो के अनुसार इसके बावजूद कांगे्रस की उम्मीद की किरण ब्राहम्ण वोट हैं। कभी मीनासिंह के लिए क्षत्रप की भूमिका में रहे ब्राहम्ण नेता रामकिषोर चतुर्वेदी जो हाल ही में कांग्रेस में शामिल हुए हैं। मानपुर क्षेत्र में ब्राहम्णों की संख्या वोटों के प्रतिषत के लिहाज से अधिक है। इसके साथ ही यदि उन्होनें अपने परम्परागत वोट यानि दलित और मुसलिम वर्ग के मतदाताओं को भी अपना सब्ज दिखाया तो उनके लिए लेने के देने पड सकते हैं।
अन्य राजनैतिक दलों की भूमिका:- सभी राजनैतिक पंडितों को धता बताते हुए अन्य राजनैतिक पार्टियों या निर्दलीय प्रत्याषी के रूप में कोई छुपा रूस्तम निकल आये। इसकी संभावना कितनी हो सकती है कि कोई इसका अनुमान लगाने को भी तैयार नहीं है। सपाक्स ,बसपा सहित राजनैतिक दल और निर्दलीय उम्मीदवार इस बार किस राजनैतिक दल का गणित बिगाडेगें, यह भविष्य की गर्त में छुपा हैं। लेकिन सभी मिलकर किसी ना किसी राजनैतिक दल की इच्छाओं की बलि जरूर चढाऐगंे। किसी ना किसी राजनीतिक दल का खेल बिगाडेगें जरूर, इसी की पूरी संभावना दिखाई दे रही है। इसीके साथ ही इस बार से ज्यादा कार्यकर्ताओं की भूमिका पर कोई निगाह नहीं रखेगा। सभी की निगाहें इस बार कार्यकर्ताओं भी पर भी रहेगी। वे अपनी पार्टी के लिए कैसे काम कर रहे हैं।
घोषित हुए दोनों विधानसभा उम्मीदवार
बांधवगढ से ध्यानसिंह परस्ते, तो मानपुर से तिलकराज सिंह
अब होगा रोमांचक चुनावी दंगल
फोटो:- बांधवगढ प्रत्याषी ध्यानसिंह , मानपुर प्रत्याषी तिलकराज सिंह
उमरिया:- दीपावली के दिन कांग्रेस ने डबल धमाका करते हुए अपने पत्ते खोल दिये। जिससे प्रमुख विपक्षी दलों के होष उड गये। कांग्रेस ने मानपुर क्षेत्र से पहला धमका तिलकराज सिंह को अपना उम्मीदवार घोषित करते हुए किया था। कांग्रेसी कार्यकर्ताओं बांधवगढ क्षेत्र में उम्मीदवार की घोषणा की देरी से परेषान हो रहे थे। कांग्रेस के द्वारा अपने उम्मीदवार की घोषणा नहीं करने से कार्यकर्ताओं की सांसे टूटती हुई दिखाई दे रही थी। लेकिन जब बांधवगढ क्षेत्र के लिए डा ध्यानसिंह परस्ते के नाम को घोषित किया , तो उनके जान में जान आ गयी। गौरतलब है कि पूरे प्रदेष में कांग्रेस जहां गुटबाजी में फंसी हुई दिखाई दे रही है। उनके अधिकांष घोषित प्रत्याषी किसी ना किसी गुट से जुडे हुए हैं। उम्मीदवार सिंधिया गुट, कमलनाथ गुट, दिग्विजय सिंह गुट, और अजय सिंह उर्फ राहुल गुट से जुडे हुए हैं। कर्मठ कार्यकर्ताओं के अनुसार उमरिया में कार्यकर्ताओं की मांग को ही सर्वोपरि मानते हुए दोनों ही प्रत्याषियों का चयन कार्यकर्ताओं की ईच्छा अनुसार किया गया है। ऐसे में उमरिया की दोनों विधानसभा चुनाव बहुत ही दिलचस्प मोड पर पहंुच गया है। सन् 2003 , 2008, 2013 के विधानसभा चुनावों में भाजपा के सामने कोई भी प्रत्याषी सीधी टक्कर देते हुए दिखाई नहीं दे रहे थे। पहले तो 15 साल की एंटी इनकंबिसी फैक्टर फिर कांग्रेस के द्वारा प्रत्याषियों का चयन कार्यकर्ताओं की मांग के आधार पर करने से यह चुनावी दंगल भारत -पाक के क्रिकेट के मैच जैसा रोमांचक बन गया है। अब दोनों ही प्रमुख राजनैतिक दलों में से किसी की भी जीत में कार्यकर्ता ही अपना प्रमुख रोल निभायेगें। जो भी राजनैतिक दल अपने कार्यकर्ताओं को साधेगा जीत उसकी होगी। गौरतलब है कि उमरिया के राजनैतिक पंडितों के अनुसार तो दोनों ही प्रमुख राजनीतिक दलों में सीधी टक्कर है। वहीं अन्य राजनैतिक दल के साथ निर्दलीय उम्मीदवार इनकी उम्मीदों की जीत को रन आउट करने में अपनी भूमिका किस प्रकार से निभायेगें, यह देखना होगा।
ध्यानसिंह के दोनों हाथों में लड्डू:- बांधवगढ सीट के लिए कांग्रेस ने अपना प्रत्याषी के चयन में काफी समय लिया। ध्यानसिंह के नाम का चयन करने में उन्हें काफी मषक्कत करनी पडी। इसका प्रमुख कारण उनकी सुपुत्री को शहडोल संभाग की जैतपुर विधानसभा से भाजपा का उम्मीदवार घोषित करना था। इस दुविधा को त्यागने में कांग्रेस आला कमान को काफी माथापच्ची करनी पडी। उमरिया के राजनैतिक पंडितों के अनुसार षिक्षाविद , मृदुभाषी, सरल और सहज रूप से आम जनता से मिलने वाले प्रत्याषी का चयन करते हुए कांगे्रस ने अपनी पहली बाजी अपने नाम कर ली है। ध्यानसिंह को कांग्रेस ने अपना उम्मीदवार बांधवगढ सीट से बनाया है। वहीं उनकी सुपुत्री मनीषा सिंह को जैतपुर विधानसभा सीट के लिए भाजपा ने अपना उम्मीदवार घोषित किया है। ऐसे में ध्यानसिंह को दोनेंा हाथों में लड्डू रखते हुए पिता-पुत्री दोनों की विजय कामना करनी पड रही है। जहां वे अपनी बेटी को भी विजयी होते हुए देखने चाहते हैं, वहीं अपनी विजय के लिए भी जनता और भगवान के दरवाजे में पहुंच रहे हैं। ऐसे में यह देखना बहुत ही दिलचस्प होगा कि भगवान उनकी झोली में कितनी खुषियां देता है।
मानपुर से तिलकराज सिंह कांग्रेस उम्मीदवार:- मानपुर क्षेत्र से कांग्रेस आलाकमान को ज्ञानवती सिंह, शकुन्तला प्रधान जैसे परिचित नामों के स्थान पर तिलकराज सिंह को अपना उम्मीदवार की घोषणा को दीवाली पूर्व धमाके के रूप में देखा जा रहा है। तिलकराज सिंह पहले भाजपा में शामिल थे। लेकिन जब उन्हें यह दिखाई दिया कि भाजपा की मीनासिंह जैसी कद्दावर नेता के सामने उनकी एक नहीं चलेगी। उन्होंने अपनी महत्वाकंाक्षाओं की उम्मीदों को पूरा करने के लिए कांग्रेस का दामन थाम लिया। कुछ ही सालों की मेहनत के बाद अब उन्हे यह मौका भी मिल गया। वोटों की गणित से देखा जाये तो मीनासिंह की जीत का अन्तर प्रत्येक विधानसभा चुनाव में बढता चला गया है। इसका सीधा मतलब है कि मीनासिंह के प्रति क्षेत्र की जनता का लगाव भी बढता ही जा रहा है। उनकी सर्वमान्यता को कोई सीधी टक्कर देता हुआ भी दिखाई नहीं दे रहा है। उमरिया के राजनीतिक पंडितो के अनुसार इसके बावजूद कांगे्रस की उम्मीद की किरण ब्राहम्ण वोट हैं। कभी मीनासिंह के लिए क्षत्रप की भूमिका में रहे ब्राहम्ण नेता रामकिषोर चतुर्वेदी जो हाल ही में कांग्रेस में शामिल हुए हैं। मानपुर क्षेत्र में ब्राहम्णों की संख्या वोटों के प्रतिषत के लिहाज से अधिक है। इसके साथ ही यदि उन्होनें अपने परम्परागत वोट यानि दलित और मुसलिम वर्ग के मतदाताओं को भी अपना सब्ज दिखाया तो उनके लिए लेने के देने पड सकते हैं।
अन्य राजनैतिक दलों की भूमिका:- सभी राजनैतिक पंडितों को धता बताते हुए अन्य राजनैतिक पार्टियों या निर्दलीय प्रत्याषी के रूप में कोई छुपा रूस्तम निकल आये। इसकी संभावना कितनी हो सकती है कि कोई इसका अनुमान लगाने को भी तैयार नहीं है। सपाक्स ,बसपा सहित राजनैतिक दल और निर्दलीय उम्मीदवार इस बार किस राजनैतिक दल का गणित बिगाडेगें, यह भविष्य की गर्त में छुपा हैं। लेकिन सभी मिलकर किसी ना किसी राजनैतिक दल की इच्छाओं की बलि जरूर चढाऐगंे। किसी ना किसी राजनीतिक दल का खेल बिगाडेगें जरूर, इसी की पूरी संभावना दिखाई दे रही है। इसीके साथ ही इस बार से ज्यादा कार्यकर्ताओं की भूमिका पर कोई निगाह नहीं रखेगा। सभी की निगाहें इस बार कार्यकर्ताओं भी पर भी रहेगी। वे अपनी पार्टी के लिए कैसे काम कर रहे हैं।
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