स्वास्थ्य सेवाओं में नहीं हो रहा सुधार.......!!!!!!!!!!

  स्वास्थ्य सेवाओं में नहीं हो रहा सुधार
 प्रायवेट अस्पताल में मरीजों को पहुंचाने के लिए कर रहे मजबूर
 सीएएचओं से बडे बने रहे अधिकारी
फिर रोका गया देवेभो कर्मचारी का वेतन, भूखों मर रहा परिवार
उमरिया:-

उमरिया:- नयी सरकार और नये कलेक्टर के आने के बाद उमरिया जिले में स्वास्थ्य की बुनियादों षिकायतों में किसी प्रकार की कमी आती हुई नहीं दिख रही। अभी भी पहले के जैसे ही मरीजों को परेषान और हलकान होना पड रहा है। आर्थोपेडिक डाक्टर जिला अस्पताल से वेतन लेने के बावजूद अपने क्लिीनिक या प्रायवेट अस्पताल में मरीजों को पहंुचने के लिए सीधे -सीधे मजबूर कर रहे हैं। वहीं वार्ड ब्याॅय की समस्या भी जस की तस बनी हुई है। वार्ड ब्याॅय है तो कहां है, मरीजों और उनके परिजनों को तो दिखाई नहीं देते। रेडियोलाॅजिस्ट अपने निवास में रखी हुई सोनाग्राफी मषीन से मरीजों को देखना चाहते हैं। इसकी षिकायत तक सीएम हैल्पलाईन में की जा चुकी है। चिकत्सक अस्पताल से ज्यादा अपने निवास में मरीजों को अच्छे तरीके से देखते हैं। इन हालतों में जिला अस्पताल में मरीजों की सेवा कितनी और यहां पदस्थ अधिकारियों अपनी स्वयं की कितनी कर रहे हैं, यह स्वतः समझा जा सकता है। सीएमएचओं के अधीनस्थ कर्मचारी अपनी मनमानी से बाज नहीं आ रहे हैं। सीएमएचओ के अधीनस्थ अधिकारी भी मनमाने निर्णय लेते हुए अपने अधीनस्थ कर्मचारियों को खून के आंसू रूलवा रहे हैं। यही नहीं अधीनस्थ अधिकारी भी सीएमएचओ को ही दोषी दिखाने के लिए सोषल मीडिया का सहारा भी ले लेते हैं।
फिर रोका देवेभो कर्मचारी का वेतन:- मलेरिया अधिकारी दुर्गा प्रसाद पटेल अपनी मनमानी करने से बाज नहीं आ रहे हैं। उनके कार्यालय में पदस्थ देवेभो कर्मचारी अरूण पाठक का वेतन 8 माह तक रोक के रखा था। मीडिया और कमिष्नर की दखलन्दाजी के बाद डीपी पटेल को अरूण पाठक का वेतन देना पडा। लेकिन एक बार फिर अपनी मनमानी करते हुए अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाते हुए उसी कर्मचारी का एक माह का वेतन रोक दिया है। इस मामले में श्रम कार्यालय अधिकारी आर के गुप्ता की भूमिका धीरे -धीरे संदिग्ध होते जा रही है। जबकि श्रम विभाग में इस पूरे मसले की जानकारी है, लेकिन पता नहीं क्यों विभाग अधिकारी के पक्ष में ही कार्य कर रहा है। जबकि श्रम कार्यालय की प्रमुख भूमिका तो पीडित पक्ष के साथ होनी चाहिये। गौरतलब है विगत लगभग 1 साल साल वेतन के लिए तरस रहे दैवेभो कर्मचारी अरूण पाठक की हालत मानसिक रूप से विक्षिप्तता की कगार पर पहुंच चुकी है। उसका पूरा परिवार भी भूखों मरने की नौबत में है, लेकिन श्रम विभाग और मलेरिया अधिकारी की मनमानी के आगे पूरा स्वास्थ्य विभाग हाथ पर हाथ धरे बैठा हुआ है। मलेरिया अधिकारी देवेभो कर्मचारी का वेतन आठ माह से क्यों रोक रहे है, इसका लिखित में कोई जानकारी अरूण पाठक को क्यों नहीं दी गयी। सन् 2018 के नवम्बर माह के वेतन क्यों रोक के रखा गया है।
प्रायवेट अस्पताल में होगा अच्छा ईलाज:-  आर्थोपेडिक डाक्टर केसी सोनी जैसे डाक्टर है, जो अपना स्वंय का क्लिनिक जयस्तभ्भ के पास बनाने के अलावा यहीं के एक और प्रायवेट अस्पताल में भी अपनी सेवाऐं दे रहे हैं । जिला अस्पताल में पैर की हड्डी टूटने के बाद पहुचं कैप के युवा श्रवण सोनकर का अनुभव बहुत कडुवा है।  डाक्टर केसी सोनी ने उन्हें पहले अपने क्लिीनिक में बुलवाया फिर उसे प्रायवेट अस्पताल में ईलाज करवाने के लिए बाध्य करने की कोषिष की। लेकिन उसकी माली अच्छी नहीं होने के कारण श्रम कार्ड के माध्यम से जबलपुर में इलाज करवाया। ये एक उदाहरण नहीं है, आर्थोपेडिक समस्या के लिए किसी भी मरीज को इसी प्रकार से ही परेषान होना पडेगा।
इनका कहना है:- जिला मलेरिया अधिकारी को दैवेभो कर्मचारी के मामले को सुलझाने के लिए कहा गया। उसका वेतन कुछ कारणों से रूका हुआ है, जल्दी ही दैवेभो कर्मचारी को वेतन मिल जायेगा। अन्य समस्याओं को सुधारने का निरन्तर प्रयास किया जा रहा है।
सीएमएचओ डा राजेष श्रीवास्तव, उमरिया

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