षिवनारायण सिंह और मीनासिंह बने हमारे विधायक

  जिले की दोनो विधानसभा पर भाजपा काबिज
  कार्य करने की क्षमता को जनता ने जितवाया
 षिवनारायण सिंह और मीनासिंह बने हमारे विधायक
फोटो:-


उमरिया:-  जिले की दोनों ही विधानसभा सीटों में विपरीत परिस्थितियों में भाजपा के पक्ष में परिणाम आने पर पूरे प्रदेष में आष्चर्य व्यक्त किया जा रहा है। चुनाव पंडितों का माथा चकरा रहा है। ऐसे कैसे हो गया, जब परिवर्तन की लहर पूरे प्रदेष में देखी जा रही हो, इन कठिन हालात में भी मानपुर और बांधवगढ विधानसभा सीट को भाजपा ने आसानी से कैसे जीत लिया। वहीं पूरे प्र्रदेष के परिणाम को एक नजर में देखा जाये तो इसका उत्तर खोजना कोई कठिन कार्य नजर नहीं आता है। जनता ने केवल उन्हीं प्रत्याषियों को विजय दिलवायी है, जिन पर उन्हें भरोसा हो, वे उनके लिए कुछ कर सकते हैं। सीधा मतलब यही है कि दोनों विधायक क्षेत्र की जनता के लिए कार्य कर रहे थे। प्रदेष में कहीं भी पैराषूट प्रत्याषी, अहंकार के साथ दंभी, और बडबोले जनप्रतिनिधियों को अपने घर में रहने की ही नसीहत देते हुए आमजनता ने उन्हें हराकर दिखाया है। तमाम जनहितकारी नीतियों के बाद भी क्षेत्र की जनता ने भाजपा को यह दिन क्यों दिखलाया है, यह उनके लिए मंथन का समय होगा। उमरिया जिले में कांग्रेस की कन्फूयजन वाली स्थिति के बावजूद मिली प्रदेष भर में मिली सफलता से फिलहाल भले ही नेतृत्व क्षमता पर सवाल नहीं उठाये जाये लेकिन देर सवेर फिर इसी पर बहस होकर रहेगी।
षिवनारायण सिंह की विजय:- बांधवगढ विधानसभा में वंषवाद की बेल के आरोपों केा झेल रहे षिवनारायण सिंह की जीत में उनकी जीत का प्रमुख कारण उनका सहज सरल व्यवहार और आम जनता से आसानी मिलना है। लेकिन इन विपरीत परिस्थितियों में जिस असीम धीरज के साथ अपने प्रतिद्वंदियांे से संघर्ष करते हुए विजय हासिल की, इसकी सराहना होनी चाहिये। पिता की विराट छत्रछाया से बाहर निकलने का प्रयास कर रहे विधायक लल्लू भैया के लिए आगामी राह आसान नहीं होगी। उपचुनाव के बाद विजय हासिल करने के बाद मिले कम समय का उपयोग जिस प्रकार से किया था। उससे तो यही आषा की जा सकती है। वे अपने कर्तव्य के प्रति जबाबदेह होते हुए आम जनता की सेवा निरन्तर करेंगे। जनता ने उन्हें इस विष्वास हासिल करने के लिए एक बार पुनः जिताया है।
मीनासिंह की विजय:- मानपुर विधानसभा में मीनासिंह को चैथी बार की विजय हासिल करनेे के लिए एडी चोटी का जोर लगाना पडा, लेकिन उन्हें बडे अन्तर से विजय हासिल कर ली। क्षेत्र की जनता में मीनासिंह केा एक कद्दावर राजनेता के रूप जाना पहचाना जाता है। इस बार यदि भाजपा को किसी तरीके से सत्ता में रहना का मौका मिल गया तो मंत्री पद मिलना तय है। क्षेत्र की जनता ने इसी सोच के साथ ही उन्हें इतनी बडी विजय दिलवायी है। मतगणना के दौरान प्रारभ्मिक 6 दौर तक मीनासिंह कांग्रेस प्रत्याषी ज्ञानवती सिंह से पिछड रही थी, लेकिन सातवें दौर में जो बढत हासिल की ,वो फिर कम नहीं हुई बल्कि लगातार बढती ही चली गयी।
कांग्रेस का कन्फयूजन ले डूबा:- प्रदेष में बह रही अन्डर करंट कांग्रेस की लहर में भी यदि भाजपा ने अपना परचम उमरिया जिले में लहराया है,तो इसका सीधा कारण कांग्रेस का कन्फयूजन था। इन्हीं प्रत्याषियों का चयन यदि भाजपा प्रत्याषियों के चयन के समय हो गया तो यह स्थिति कुछ और भी हो सकती थी। गौरतलब है कि भाजपा के दोनों प्रत्याषियों का चयन 2 नवम्बर को हो गया था, लेकिन जिले की दूसरी विधानसभा प्रत्याषी का चयन करने कांग्रेस 10 नवम्बर तक का समय ले लिया। इन दोनों ही प्रत्याषियों को एक सप्ताह कम प्रचार करने का मौका मिला। बांधवगढ में पंाच हजार से कम की हार, और मानपुर की 20हजार से कम की हार से तो यह साफ जाहिर हो रहा है। इन्हीं प्रत्याषियों को प्रचार करने का कुछ और मौका मिला होता तो, क्षेत्र में कुछ और भी परिणाम निकल सकते थे।
  जिले की दोनो विधानसभा पर भाजपा काबिज
  कार्य करने की क्षमता को जनता ने जितवाया
 षिवनारायण सिंह और मीनासिंह बने हमारे विधायक
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उमरिया:-  जिले की दोनों ही विधानसभा सीटों में विपरीत परिस्थितियों में भाजपा के पक्ष में परिणाम आने पर पूरे प्रदेष में आष्चर्य व्यक्त किया जा रहा है। चुनाव पंडितों का माथा चकरा रहा है। ऐसे कैसे हो गया, जब परिवर्तन की लहर पूरे प्रदेष में देखी जा रही हो, इन कठिन हालात में भी मानपुर और बांधवगढ विधानसभा सीट को भाजपा ने आसानी से कैसे जीत लिया। वहीं पूरे प्र्रदेष के परिणाम को एक नजर में देखा जाये तो इसका उत्तर खोजना कोई कठिन कार्य नजर नहीं आता है। जनता ने केवल उन्हीं प्रत्याषियों को विजय दिलवायी है, जिन पर उन्हें भरोसा हो, वे उनके लिए कुछ कर सकते हैं। सीधा मतलब यही है कि दोनों विधायक क्षेत्र की जनता के लिए कार्य कर रहे थे। प्रदेष में कहीं भी पैराषूट प्रत्याषी, अहंकार के साथ दंभी, और बडबोले जनप्रतिनिधियों को अपने घर में रहने की ही नसीहत देते हुए आमजनता ने उन्हें हराकर दिखाया है। तमाम जनहितकारी नीतियों के बाद भी क्षेत्र की जनता ने भाजपा को यह दिन क्यों दिखलाया है, यह उनके लिए मंथन का समय होगा। उमरिया जिले में कांग्रेस की कन्फूयजन वाली स्थिति के बावजूद मिली प्रदेष भर में मिली सफलता से फिलहाल भले ही नेतृत्व क्षमता पर सवाल नहीं उठाये जाये लेकिन देर सवेर फिर इसी पर बहस होकर रहेगी।
षिवनारायण सिंह की विजय:- बांधवगढ विधानसभा में वंषवाद की बेल के आरोपों केा झेल रहे षिवनारायण सिंह की जीत में उनकी जीत का प्रमुख कारण उनका सहज सरल व्यवहार और आम जनता से आसानी मिलना है। लेकिन इन विपरीत परिस्थितियों में जिस असीम धीरज के साथ अपने प्रतिद्वंदियांे से संघर्ष करते हुए विजय हासिल की, इसकी सराहना होनी चाहिये। पिता की विराट छत्रछाया से बाहर निकलने का प्रयास कर रहे विधायक लल्लू भैया के लिए आगामी राह आसान नहीं होगी। उपचुनाव के बाद विजय हासिल करने के बाद मिले कम समय का उपयोग जिस प्रकार से किया था। उससे तो यही आषा की जा सकती है। वे अपने कर्तव्य के प्रति जबाबदेह होते हुए आम जनता की सेवा निरन्तर करेंगे। जनता ने उन्हें इस विष्वास हासिल करने के लिए एक बार पुनः जिताया है।
मीनासिंह की विजय:- मानपुर विधानसभा में मीनासिंह को चैथी बार की विजय हासिल करनेे के लिए एडी चोटी का जोर लगाना पडा, लेकिन उन्हें बडे अन्तर से विजय हासिल कर ली। क्षेत्र की जनता में मीनासिंह केा एक कद्दावर राजनेता के रूप जाना पहचाना जाता है। इस बार यदि भाजपा को किसी तरीके से सत्ता में रहना का मौका मिल गया तो मंत्री पद मिलना तय है। क्षेत्र की जनता ने इसी सोच के साथ ही उन्हें इतनी बडी विजय दिलवायी है। मतगणना के दौरान प्रारभ्मिक 6 दौर तक मीनासिंह कांग्रेस प्रत्याषी ज्ञानवती सिंह से पिछड रही थी, लेकिन सातवें दौर में जो बढत हासिल की ,वो फिर कम नहीं हुई बल्कि लगातार बढती ही चली गयी।
कांग्रेस का कन्फयूजन ले डूबा:- प्रदेष में बह रही अन्डर करंट कांग्रेस की लहर में भी यदि भाजपा ने अपना परचम उमरिया जिले में लहराया है,तो इसका सीधा कारण कांग्रेस का कन्फयूजन था। इन्हीं प्रत्याषियों का चयन यदि भाजपा प्रत्याषियों के चयन के समय हो गया तो यह स्थिति कुछ और भी हो सकती थी। गौरतलब है कि भाजपा के दोनों प्रत्याषियों का चयन 2 नवम्बर को हो गया था, लेकिन जिले की दूसरी विधानसभा प्रत्याषी का चयन करने कांग्रेस 10 नवम्बर तक का समय ले लिया। इन दोनों ही प्रत्याषियों को एक सप्ताह कम प्रचार करने का मौका मिला। बांधवगढ में पंाच हजार से कम की हार, और मानपुर की 20हजार से कम की हार से तो यह साफ जाहिर हो रहा है। इन्हीं प्रत्याषियों को प्रचार करने का कुछ और मौका मिला होता तो, क्षेत्र में कुछ और भी परिणाम निकल सकते थे।

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