बांधवगढ सीट की हार अखर रही

बांधवगढ सीट की हार अखर रही
निर्दलीय ने दिलायी जीत !


उमरिया:- बांधवगढ विधानसभा सीट पर मात्र 4 हजार से भी कम मतों से मिली हार उमरिया कांग्रेस जनों को हिला के रख दिया। उन्हें इस बार पूरी आषा थी,कि इस चुनाव को जीत रहे हैं, लेकिन अंत हार में होना उनके लिए एक सदमे के समान है। इस क्षेत्र में भाजपा ने इस क्षेत्र के लिए जो गेम प्लान बनाया था, वो पूरी तरह से सफल सिद्ध हुआ। वहीं कई क्षेत्रांे में कांग्रेस ने जनता के हित के लिए जो मुददे उठाये वो उन्हीं के लिए गले की फांस बन गये। इसके साथ ही भाजपा के निर्दलीय प्रत्याषी को भी हल्के से लेना उनके लिए भारी पडा। उमरिया जनों को निर्दलीय प्रत्याषी के द्वारा मिली संभावित हार ने विगत उमरिया नगरपालिका चुनाव की याद दिला दिया। यह भी सच है कि इस प्रकार का पूरा गेम प्लान छत्तीसगढ में पूरी तरीके से असफल भी साबित हुआ है। इसका यह अर्थ है कि सामूहिक रूप से नहीं केवल किसी विषेष क्षेत्र में इस गेम प्लान को बनना चाहिये। और शायद वहीं पर यह चल भी जाये।
निर्दलीय प्रत्याषी को मिले 18हजार से अधिक मत:-
भाजपा से बागी होने के बाद सतीलाल बैगा ने निर्दलीय प्रत्याषी के रूप में चुनाव लडा था। जिन मतदान केन्द्रों में सतीलाल को ज्यादा मत मिले उन्हीं मतदाता केन्द्रों में कांग्रेस को तीसरे पर रहने को मजबूर होना पडा। मतों के लिहाज से भी सतीलाल ने 18 हजार से अधिक प्राप्त हुए हैं। इनमें से अधिकांष मत कांग्रेस के ही हैं, जो सतीलाल को ही मिले हैं। सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार गुपचुप तरीके से भाजपा के द्वारा खेली गयी चाल से विपक्ष चारों खाने चित्त हो गया। ये ठीक वैसी ही चाल थी ,जिसे उमरिया नगरपालिका परिषद में अपनाया जा चुका था। उमरिया जिला भाजपा संगठन मंे इसी कारण से इस चाल को चलने वाले भाजपा जन का कद भी बढ गया है।े
जनहितकारी मुद्दा भी हो गया गलत :-
चंदिया को स्मार्ट सिटी बनने का अवसर लकी ड्रा के आधार मिला है। चुनाव के कुछ माह पहले कांग्रेस के द्वारा चंदिया क्षेत्र में सडक चैडीकरण के लिए धरना प्रदर्षन किया था। प्रषासन ने उस मांग के आधार पर रहवासियों के पट्टे वाली मकानों को जमींदोज कर दिया। ऐसे समय में भी केवल भाजपा के नेता ही प्रषासन का प्रतिवाद करते हुए दिखाई दिये। भाजपा नेता सुषील गौतम ने इस पूरे मुद्दे को लेकर लगातार संघर्ष करते ही चले गये। ऐसे में जनता को ना चाहते हुए भी भाजपा के प्रत्याषी पर ही अपना दांव लगाना पडा। संवेदनषील मुद्दों के समय पूरा विपक्ष का खामोष रहना जनता को अखर गया था, इसलिए कम से कम उमरिया की जनता ने अपने उन्हीं प्रत्याषियों पर ज्यादा भरोसा किया जिन्हें उन्होंने पहले जांच लिया था। जनता ने केवल यही याद रखा कि चंदिया शहर को उजाड करवाने की पहल किसने की, और यही सब बांधवगढ सीट पर अंतिम कील ठोकने का कार्य साबित हुआ। आम लोगों के द्वारा इसी प्रकार से बाल की खाल निकालने का कार्य जारी रहेगा, लेकिन राजनैतिक दलों को सोचना ही पडेगा, कि किस मुद्दे को और कब उठायें।

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