फिर हुई बाघ की मौत करंट लगने से

फिर हुई बाघ की मौत करंट लगने से
 नही किये जा रहे इंसुलेटेड वायर
बजट की कमी है बहाना
वन्यप्राणियों की सुरक्षा के लिए आया बजट पहुंचता है
अधिकारियों की जेब में

उमरियारू.  बांधवगढ टाईगर रिजर्व क्षेत्र में एक और बाघ की मौत विद्युत करंट लगने से हो गयी। पनपथा रेंज में हुई इस आकस्मिक अप्राकृतिक बाघ की मौत के पहले इसी रेंज में सन् 2016 में एक दूसरे अन्य बाघ की मौत ठीक इस तरह हुई थी। बीटीआर क्षेत्र में इसके पहले भी कंरट लगने से कई बाघों और तेंदुऐ के साथ अन्य वन्यप्राणियों की मौत हो चुकी है। केवल एक दषक में कई दर्जनों से ज्यादा वन्यप्राणियों की आकस्मिक मौत का कारण विद्युत करंट की चपेट में आना ही है। कंरट लगने से कई बाघों और तेंदुऐ के साथ अन्य वन्यप्राणियों की मौतों से वन्यप्राणी विषेषज्ञ लगातार चिंता कर रहे हैंए लेकिन पार्क प्रबन्धन की कान में जूं तक नहीं रेंग रही है। पूरे पार्क एरिया से ही लगभग 160 किलोमीटर इलेक्ट्रिक वायर का इंसुलेटेड होना इसलिए रूका हुआ है क्योंकि बजट की कमी है। इंसुलेटेड वायर का ही कार्य पूरा  हो जाने से कम से कम विद्युत कंरट से होने वाली मौतों में 80 से 90 प्रतिषत कमी आने की संभावना है। लेकिन पार्क प्रबन्धन और शासन स्तर पर अन्य जिम्मेदार विभाग एक दूसरे पर लीपापोती करते हुए इस कार्य को टाल रहे हैं। वहीं पार्क के जिम्मेदार अधिकारियों का भी अनौपचारिक बातचीत में इसे फिजूलखर्च ही मानते हैं। उनका कहना शातिर अपराधी इस इंसुलेटेड वायर को काटकर भी अपना कार्य कर सकते हैं। इस प्रकार के तर्कविहीन तर्कों और रवेये के कारण ही पूरे मध्यप्रदेष में विगत दो सालों में 24 बाघों की अप्राकृतिक मौत हुई वहीं पडोसी राज्य छत्तीसगढ में इतने ही काल में एक भी बाघ की अप्राकृतिक मौत नहीं हुई। समस्याओं के समाधान के लिए जिम्मेदार अधिकारी हमेषा की तरह रटा.रटाया जबाब ही देते रहते हैं।
सुरक्षा में कमीए पार्कप्रबन्धन की असफलतारू.
घटना घटने के बाद ही आरोपियों को गिरफतार किया जाता है। षिकार की घटना को अंजाम देते हुए या उससे पहले कभी भी पार्कप्रबन्धन के द्वारा आरेापियों को गिरफतार करने की कोई कार्रवाई नहीं होना अपने आप में पार्क प्रबन्धन की असफलता को दर्षाता है। वो भी तब जब पार्क प्रबन्धन को वन्यप्राणी सुरक्षा के नाम पर करोडों रूपयों का बजट मिलता है। इस पूरे बजट का इस्तेमाल जिस प्रकार से किया जाता हैए उसकी एक बानगी सूचना के अधिकार के तहत जानकारी लेने पर मिल जाती है। सूचना के अधिकार के तहत जानकारी में बताया जाता है कि वन्यजीवों के टीकाकरण विषेषरूप से बायसनों के लिए किसी भी प्रकार की दवाईयों का क्रय नहीं किया गया है। वहीं दूसरी तरफ इस मसले पर सवाल जबाब देने पर अधिकारियों का कहना रहता है कि क्लर्क की गलती से ऐसा लिखा गया थाए दवाईयां मंगवायी गयी थी। ऐसे ढेंरों उदाहरण जिनसे यह मालूम पड जाता है कि वन्यप्राणियों की सुरक्षा के लिए आये हुए बजट को अधिकारी अपनी जेब में ज्यादा भरते हैं। इन्हीं कारणों से वन्यप्राणियों की सुरक्षा पर सबसे ज्यादा सवाल पूरे देष में यहीं पर उठ रहे हैं।
बाघ को समझा जा रहा बिल्लीरू.
वन्य सुरक्षा के नाम पर जारी कोई नीति नहीं होने के कारण पार्क प्रबन्धन के जिम्मेदार अधिकारी अपनी मनमर्जी से कोई भी निर्णय लेते रहते हैं। पूरे पार्क प्रबन्धन को एक समय जू ;चिडियाघर द्ध बनाने की तैयारी की जा रही थी। उसके लिए बाकायदा 116 किलोमीटर की सीमा पर जालियों लगवायी गयी थी। लेकिन बाघ कोई बिल्ली तो है नहीं इन जालियों की हवा उन्होंने कुछ ही महीनों में निकाल के रख दी। ऐसे में पार्क प्रबन्धन केवल जालियों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर लगवाने और हटाने के कार्य में अपने श्रमिकों को लगवाये रहते हैं। वन्यप्राणियों की सुरक्षा के लिए बजट आता हैए उसका इस्तेमाल किस प्रकार से अधिकारी अपनी जेब में भर सकते हैए उसका यह एक तरीका है। वहीं इस सवाल पर जब आरटीआई एक्टिविस्ट ने जानकारी मांगी गयी है तो अधिकारियों को लेने के देने पड गये है।
इनका कहना हैरू.  पार्क के पनपथा रेंज के संभावित चार आरोपियों में दो गिरफतार किया जा चुका है। वहीं इंसुलेटेड वायर के लिए कई बार प्रपोजल भेजा चुका है।
फील्ड डायरेक्टर मृदुल पाठक बांधवगढ टाईगर रिजर्व

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